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रमा एकादशी 2021


Wednesday, 17 March 2021
रमा एकादशी 2021

रमा एकादशी 2021

तिथि- 01 नवम्बर 2021

 

सनातन धर्म में रमा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत किया जाता है। एकादशी के दिन लक्ष्मी जी के रमा रूप और भगवान विष्णु के केशव रूप की पूजा की जाती है। इस एकादशी के व्रत को करने से मन में धन-धान्य, सुख, शांति, समृद्धि आती है।

 

रमा एकादशी शुभ मुहूर्त

तिथि- 01 नवम्बर

समय- 02 नवम्बर को प्रातः 06:33:26 से 08:45:52 तक

समयावधि- 2 घंटे 12 मिनट

 

रमा एकादशी पूजा विधि

रमा एकादशी में भगवान विष्णु के केशव रूप की अराधना तथा व्रत को इन विधि विधान के साथ पूर्ण करना चाहिए-

चरण- 1  सूरज के उगने से पहले उठकर स्नान आदि कर संकल्प लेना चाहिए।

चरण- 2  माता लक्ष्मी के साथ-साथ नारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए। 

चरण- 3  फूल, फल, धूप, दीप, तुलसा, माता लक्ष्मी व भगवान विष्णु की प्रतिमा पर अर्पित करने चाहिए।

चरण- 4  रात्रि को जागरण करना चाहिए। 

चरण- 5  अगले दिन उठकर स्नान आदि कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए तत्पश्चात स्वयं का व्रत खोलना चाहिए।

 

व्रत के दौरान इन कार्यों को करने से बचें-

पुण्य प्राप्त करने के लिए बिस्तर पर सोने को त्यागना चाहे।

भगवान की नाराजगी से बचने के लिए पेड़ों के पत्ते तथा टहनियों को नहीं तोड़ना चाहिए।

खाने को त्यागना चाहिए। निराहार रहना ही सात्विक जीवन जीना है।

नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए क्रोध नहीं करना चाहिए।

नशीले पदार्थों से उपयोग से बचना चाहिए।

 

रमा एकदशी का महत्व

यह एकादशी कामधेनु और चिंतामणि के सामान फल देने वाली एकादशी है। इसका व्रत कर मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। अगर मनुष्य के इस व्रत को विधि विधान से संपूर्ण करता है तो उसके घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती और उसे पुण्य फल प्राप्त होते हैं।

 

पौराणिक कथा

प्राचीन काल में एक मुचुकुंद नाम का राजा राज्य करता था। कुबेर विभीषण वरुण इंद्र आदि इसके मित्र थे। राजा बहुत ही सत्यवादी और हरि भक्त था। उस राजा के एक पुत्री थी जिसका नाम चंद्रभागा था। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह राजा चंद्रसेन के शोभन के साथ किया। राजा की पुत्री जब अपने ससुराल में थी उस समय यह एकादशी आई। पुत्री ने सोचा मेरा पति बहुत ही कमजोर है। यह इस एकादशी का व्रत करने में सक्षम नहीं है परंतु पिता की आज्ञा थी कि इस एकादशी को सभी व्रत रखेंगे। दशमी के दिन ही पूरे राज्य में ढोल नगाड़ों से ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल एकादशी है और सभी को व्रत रखना है। यह सुनकर शोभन अपनी पत्नी के पास जाकर बोला कि तुम मुझे बताओ कि मैं कैसे इस एकादशी के व्रत को ना करूं। अगर मैंने यह व्रत किया तो मैं अवश्य ही मर जाऊंगा। यह सुन चंद्रभागा ने कहा कि मेरे पिता के राज्य में यह व्रत सभी को रखना होता है। इस दिन पशु भी भोजन अंजल ग्रहण नहीं करते तो मनुष्य की क्या बात कि वो भोजन ग्रहण कर सके। इसलिए तुम इस राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य चले जाओ। अगर तुम यहां पर रहना चाहती हो तो इस व्रत को रखना ही पड़ेगा।

 इस पर शोभन इस व्रत को रखने के लिए तैयार हो गया। उसने ऐसा विचार कर एकादशी का व्रत किया और सूर्यास्त होने के बाद रात्रि को जागरण किया परंतु रात्रि में ही उसका का निधन हो गया। तीन दिन बाद प्रातः काल में शोभन के शरीर को अग्नि में जला दिया। अपने पिता की आज्ञा के अनुसार चंद्रभागा अपने पति के साथ अग्नि में नहीं बैठी। इस एकादशी के प्रभाव से चंद्रभागा के पति को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित राज्य मिला। कुछ दिन पश्चात एक ब्राह्मण ने आकर चंद्रभागा को इस विषय में बताया तो चंद्रभागा अपने पति के पास गई और दोनों सुखमयी तरीके से रहने लगे। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और हत्या का दोष भी खत्म हो जाता है।

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