श्रावण पुत्रदा एकादशी 2021
तिथि- 18 अगस्त 2021
श्रावण पुत्रदा अर्थात पुत्र प्रदान करने वाली एकादशी श्रावण पुत्रदा एकादशी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आती है। सनातन धर्म के अनुसार मान्यता है कि जो मनुष्य श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत विधि विधान के साथ रखता है वह वाजपेई यज्ञ के समान फल की प्राप्ति करता है। व्रत की कथा के अनुसार श्रवण मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
श्रावण पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त
तिथि- 18 अगस्त
समय- 19 अगस्त को 06:34:51 से 08:29:04 तक
समयावधि- 1 घंटे 54 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय
समय- 19 अगस्त को 06:34:51
श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
श्रावण पुत्रदा एकादशी में इस विधि का पालन करना चाहिए-
चरण- 1 ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें एवं निर्मल वस्त्र धारण करें।
चरण- 2 श्री नारायण के प्रतिमा के समक्ष घी का दीप प्रज्वलित करें।
चरण- 3 ऋतु फल एवं तिल का भोग लगाएं ।
चरण- 4 श्रावण पुत्रदा एकादशी में पूरे दिन निराहार रहे। सायंकाल की पूजा के पश्चात फलहार ग्रहण करें।
चरण- 5 विष्णु सहस्रनाम का पाठ अवश्य करें।
चरण- 6 श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वालों को रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए।
चरण- 7 द्वादशी में ब्राह्मण को भोजन कराकर, दक्षिणा देकर विदा करें तत्पश्चात स्वयं भोग ग्रहण करें
श्रावण पुत्रदा एकदशी का महत्व
सनातन धर्म में एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण तिथि मानी गई है। श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत विधि विधान करने वाले मनुष्य को संतान प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है जिससे उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। व्रत रखने पर मनुष्य के समस्त पापों का विनाश होता है। मन की चंचलता को समाप्त करने के लिए तथा धन की वर्षा करवाने के लिए इस व्रत को मनुष्य करता है।
पौराणिक कथा
द्वापर युग के प्रारंभ में महिष्मति नाम की नगरी में महीजित नाम का एक राजा रहता था। राजा महीजित के कोई पुत्र नहीं था। वह इसी चिंता में ग्रस्त रहता था। उसे अपना राज्य दुखदाई प्रतीत होता था। पुत्र बिना इस लोक और परलोक दोनों में ही सुख की प्राप्ति नहीं है। राजा ने पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए बहुत से प्रयास किए परंतु वह अपने हर प्रयास में असफल साबित हुई। जैसी जैसी राजा की आयु बढ़ रही थी वैसे ही उनके चिंता भी बढ़ने लगी। एक दिन राजा ने प्रजा के समक्ष अपनी इस समस्या को प्रकट किया। राजा के इस परेशानी के लिए उनके मंत्रीगण वन को गए वन में उन्होंने बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों से राजा के इस परेशानी का हल पूछा। सभी ऋषि ने मंत्रीगणों को महर्षि लोमेश के पास जाने के लिए कहा। जब मंत्रीगण महर्षि के पास पहुंचे तो महर्षि जी ने उनसे उनके समस्या पूछी। मंत्रीगणों ने महर्षि को अपना परिचय देते हुए सारी बात बतायी। राजा के सुख में सुखी और दुख में दुखी मंत्रियों ने इस समस्या का उपाय बताने के लिए उनसे आग्रह किया और उनका मार्गदर्शन कर कर इस समस्या का समाधान अवश्य प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की। महर्षि ने आंखें बंद कर राजा के का विचार किया और महर्षि ने बताया कि यह राजा पिछले जन्म में बहुत है निर्धन था बुरे कर्म करता था। मदिरापान किया करता था। एक जगह से दूसरी जगह घूमा करता था। श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन दोपहर के समय राजा प्यास से व्याकुल होकर एक नदी पर पानी पीने गया। वहीं एक गाय पानी पी रही थी। राजा ने उस गाय को हटाकर स्वयं पानी पिया। राजा का यह कृत्य धर्म के अनुसार नहीं था। अपने पिछले जन्मों के फल अनुसार राजा इस जन्म में फल भोग रहा है पाप के कारण संतान की प्राप्ति नहीं हुई। महर्षि ने बताया अगर राजा के प्रियजन एवं सारी जनता शुक्ल पक्ष के श्रावण पुत्रदा एकादशी का विधि विधान पूर्वक व्रत करें तो राजा को संतान सुख की प्राप्ति होगी। महर्षि के बताए अनुसार राजा की प्रजा ने राजा के लिए विधि विधान से श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इसके परिणाम स्वरूप रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। तभी से इस एकादशी का नाम श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।
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