आपने यह लाइन जरूर सुनी होगी कि भगवान से बड़ा कोई नहीं होता है। श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यही बात समझाते हुए नजर आ रहे हैं कि मेरी मर्जी के बिना एक पत्ता तक नहीं हिल सकता है। संसार में जो भी कुछ हो रहा है उसमें कहीं ना कहीं मेरी मर्जी है। मनुष्य कई बार अहंकार से यह बात सोचता है कि संसार को चलाने वाला ईश्वर नहीं बल्कि वह खुद है किंतु इसमें सच्चाई नहीं है। राजस्थान में जैसलमेर से रेगिस्तान में 120 किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान सीमा के पास एक मंदिर है जिसका नाम तनोट माता का सिद्ध मंदिर बोला जाता है। जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बनी तनोट माता के मंदिर पर 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान ने करीब 3000 तोप के गोले दागे थे। लेकिन आश्चर्य की बात यह रही थी कि एक भी गोला मंदिर के ऊपर नहीं गिरा था। तभी से माता का यह सिद्ध मंदिर अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है।
आज भी यह रहस्य रहस्य ही बना हुआ है कि आखिर कैसे यह हुआ कि इतने बम के गोले गिरने के बावजूद भी एक भी गोला नहीं फटा। आसपास गांव में सारे गोले गिरे और तबाही का मंजर नजर आया था लेकिन इस सिद्ध मंदिर पर पाकिस्तान की तरफ से गिरा एक भी गोला नहीं फटा। यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिए भी रहस्य का केंद्र बना हुआ है। भारतीय सेना के जवान बोलते हैं कि मंदिर लगातार उनकी हिफाजत करता हुआ नजर आता है।
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1965 में पाकिस्तानी सैनिकों ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया था। दुश्मनों की तोपों से जबरदस्त तोप के गोले बरसाए गए थे। मेजर जयसिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां लगातार दुश्मनों का सामना कर रही थीं। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना की तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर को बर्बाद नहीं कर सके। यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम फटे तक नहीं थे। बहुत सालों तक यह मंदिर गुमनाम रहा और इसकी शक्ति के बारे में भक्त जान नहीं पाए लेकिन धीमे-धीमे या मंदिर काफी प्रसिद्ध हो गया और अब पाकिस्तान में भी यह मंदिर काफी प्रसिद्ध हो चुका है।
पाकिस्तान का मकसद था कि भारत के इस जमीन के टुकड़े पर कब्जा कर लिया जाए लेकिन माता की शक्ति के सामने पाकिस्तान की सेना की एक भी नहीं चली। तनोट माता के प्रताप से हुआ यह है कि पाकिस्तानी सेना 4 किलोमीटर के अंदर तक हमारी सीमा में तो घुस आई थी लेकिन इसके बाद भारतीय सैनिक पाकिस्तान के ऊपर हावी हो गए और पाकिस्तानी सेना को दबे पैर पीछे लौटना पड़ा था। तनोट माता का मंदिर उस समय भारतीय सैनिकों के लिए सुरक्षा का कवच बन गया था। अब मंदिर को बीएसएफ ने अपने नियंत्रण में ले लिया और यहां का सारा प्रबंधन सुरक्षा बल के हाथों में आ गया। मंदिर के संग्रहालय में वे सभी गोली रखे हुए हैं जो कि मंदिर में गिरे तो थे लेकिन फटे नहीं। यहां का पुजारी भी सैनिक ही है। सुबह शाम यहां पर सैनिक आरती करते हैं प्रवेश द्वार पर एक रक्षक हमेशा तैनात रहता है।
जैसलमेर से तनोट माता मंदिर पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका सड़क मार्ग है। जैसलमेर से मंदिर तक पहुंचने में करीब 2 घंटे का समय लगता है। शहर से मंदिर के लिए कई टैक्सियां उपलब्ध हैं। मंदिर का रास्ता भी काफी शानदार है। थार रेगिस्तान के पीले रेत के टीलों से लेकर आसमान के नीले नजारों तक, तनोट माता मंदिर की आपकी यात्रा काफी यादगार होगी। भले ही तनोट माता मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी किराए पर लेना सबसे सुरक्षित और तेज़ तरीका है, लेकिन कुछ लोग दूरी तय करने के लिए बाइक भी किराए पर लेते हैं।
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