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अमृतसर का स्वर्ण मंदिर


Thursday, 18 March 2021
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर

अमृतसर का स्वर्ण मंदिर

जीवन के दुखों से पार उतरने के लिए सबसे अच्छा मार्ग भक्ति है और उसी भक्ति तक पहुंचने के लिए लोग अलग-अलग रास्ते अपनाते हैं। विश्व भर में अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं। हर किसी का आस्था का सैलाब अलग तरह से जुड़ा होता है। लेकिन सबका उद्देश्य केवल भगवान तक पहुंचने का है। कोई भगवान को मंदिर में जाकर तो कोई मस्जिद में और कोई गुरुद्वारे में जाकर पूजता है। हर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा अपने आप में एक अलग ही खूबसूरती रखता है लेकिन उन सब में सबसे खूबसूरत कहलाया जानेवाला एक गुरुद्वारा है जो परम पवित्र और सुंदरता से परिपूर्ण है। जिसका नाम है स्वर्ण मंदिर। जी हां, हम उसी स्वर्ण मंदिर की बात कर रहे हैं इसके बारे में अक्सर आपने पढ़ा होगा सुना होगा जाने की इच्छा व्यक्त की होगी। चलिए तो हम आपको अमृतसर के गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के बारे में वह तमाम बातें बताएंगे। जिससे आप भी इस गुरुद्वारे में जाने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।

स्वर्ण मंदिर की अद्भुत खूबसूरती

अमृतसर का गुरुद्वारा अपने आप में एक परम पवित्र और भक्ति भाव से भरा हुआ है जो पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है। मंदिर यानी गुरुद्वारे को अमृतसर का दिल कहा जाता है और इस हरमिंदर साहेब के नाम से भी जाना जाता है। अमृतसर पंजाब की सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा पवित्र शहरों में शामिल है। इसकी खूबसूरती का अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है। ये अमृतसर में देश को वो चमकता सितारा है जो सभी को शांति और सुख की किरणें देता है। हरमिंदर साहेब की दीवारों की डिजाइन सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। इसकी छतों को इतनी खूबसूरती से तराशा है कि जवाब नहीं।

स्वर्ण मंदिर का निर्माण

हरमिंदर साहेब का निर्माण करीब 67 फीट क्षेत्रफल में किया गया है। जिसके चारों दिशाओं में चार दरवाजें हैं। उन दरवाजों की काफी कलाकारी करके नक्काशी की गई। ये गुरुद्वारा तलाब के बीचों-बीच बना है जो लगभग 40 स्क्वायर फुट क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस पावन स्थल की तीन मंजिल की इमारत है जिसकी पहली मंजिल पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है। दूर-दूर से श्रृद्धालु आकर पवित्र पाठ को सुनते हैं। स्वर्ण मंदिर में सबसे खूबसूरत वो तालाब है जिसमें तरह-तरह के रंगों की मछली रहती है।

 

स्वर्ण मंदिर का इतिहास

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के सूफी संत साईं मियां मीर के हाथों से रखवाली गई थी। कई इतिहासकारों का मनाना है कि सिखों के चौथे गुरु ने रामदास जी ने इसकी नींव रखवाई थी। 1577 ईसवी में स्वर्ण मंदिर का निर्माण शुरू किया गया था। सिखों के प्रथम गुरु नानक और पांचवे गुरु अर्जुन ने इसकी वास्तुकला डिजाइन की थी।

गुरुद्वारे को क्यों कहते हैं स्वर्ण मंदिर

हरमिंदर साहेब का इतिहास 400 साल के करीब का है। तब से कई बार इसे नष्ट किया जा चुका है। लेकिन हर बार आस्था और विश्वास ने इसे दोबारा बना दिया। 17 वीं शताब्दी में स्वर्ण मंदिर को महाराज सरदार जस्सा सिंह अलुवालिया ने बनावाया था। 19 वीं शताब्दी में पूरी तरह से नष्ट होने पर इस महाराज रणजीत सिंह ने अद्भुत तरीके बनावाया और उसी दारौन इस पर सोने की परत चढ़ाई गई जिससे हरमिंदर साहेब गुरुदवारे का नाम स्वर्ण मंदिर नाम हुआ।

विश्व की सबसे बड़ी किचन

स्वर्ण मंदिर की रसोई विश्व सबसे बड़ी रसोई है। जिसे हरमिंदर साहेब ने बनावाया था। बता दें कि यहां पर हर रोज 1 लाख से भी ज्यादा लोगों का लंगर लगाया जाता और लाखों लोगों को प्रसाद वितरित होता है।

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