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Mahabharat: इस वजह से सिर्फ युधिष्ठिर जिंदा पहुंचे थे स्वर्ग, द्रौपदी सहित अन्य की हो गई थी मृत्यु


Tuesday, 06 April 2021
why yudhisthira reached heaven alive bgys/Mahabharat

महाभारत का युद्ध एक ऐसा युद्ध था। जैसा ना कभी हुआ है और ना ही कभी होगा। इस युद्ध में भाई-भाई आपस में लड़े और न्याय को विजय दिलाने के लिए पांडवों ने कौरवों पर जीत हासिल की। महाभारत के युद्ध के साक्ष्य अभी तक मिलते हैं। यह युद्ध इतना भयानक था कि माना जाता है आज तक भी कुरुक्षेत्र के धरती का रंग लाल है।

महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं दिया था इसलिए उन्होंने विजय प्राप्त की। परंतु उनके मन में एक भारी दुख उत्पन्न हुआ कि उन्होंने अपने ही भाइयों की मृत्यु की है इसलिए वह इस पाप के साथ कैसे जीवित रह सकते हैं। पांडवों ने निश्चय लिया के अपना सारा राजपाट छोड़कर स्वर्ग जाएंगे। स्वर्ग जाने की इच्छा पांचों पांडव के साथ द्रौपदी की भी थी। मगर कहते हैं कि जिसके भाग्य में जो होता है उसे वही मिलता है इसलिए सभी पांचो पांडव में से केवल बड़े भाई युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंचे। आज हम आपको यहीं बताने जा रहे हैं कि अकेले युधिष्ठिर ही क्यों स्वर्ग पहुंचे थे।

 

पांडवों में केवल युधिष्ठिर को ही क्यों मिला था स्वर्ग? 

 

आपको बता दें कि पांचो पांडव और द्रौपदी जीवित ही स्वर्ग जाना चाहते थे। जब वो रास्ते में जा रहे थे तो भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी की मृत्यु हो गई और वह युधिष्ठिर को छोड़कर को मृत्यु को प्राप्त हुए। जिसके बाद युधिष्ठिर ने अकेले ही स्वर्ग का रास्ता तय किया और जीवित ही स्वर्ग पहुंच गए। जब वह स्वर्ग पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां पर उनका कोई भी भाई और द्रौपदी नहीं है जबकि उनका चचेरा भाई दुर्योधन स्वर्ग में है।


उनके मन में बड़ा ही भारी संशय उत्पन्न हुआ। उन्होंने वहां पर देवदूत से पूछा कि मेरे भाई स्वर्ग में नहीं है जबकि दुर्योधन ने इतने पाप की और वह स्वर्ग में है। तब उस पर देवदूत ने कहा कि लोग अपने एक पुण्य से ही स्वर्ग को प्राप्त कर सकते हैं और दुर्योधन ने भी ऐसा ही एक पुण्य किया था। जिसकी वजह से वह स्वर्ग में है परंतु तुम्हारे चारों भाइयों ने अश्वत्थामा की मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया। यही कारण है कि तुम्हारे भाई यहां पर नहीं है तब उन्होंने कि आप मुझे मेरे भाइयों के पास ले जाइए। जिस मार्ग की तरफ देवदूत युधिष्ठिर को ले जा रहे थे उधर बहुत ही भयानक अंधकार था। हर तरफ दुर्गंध आ रही थी। इधर उधर शव पड़े हुए थे। जब युधिष्ठिर ने पूछा कि एक कैसा स्थान है। मुझे इस स्थान पर नहीं जाना तब देवदूत ने कहा कि ठीक है। आप वापस वर्ग में चलिए। युधिष्ठिर जैसे ही से जाने लगे वहां पर किसी के चिल्लाने की आवाज आई। युधिष्ठिर वहां कुछ देर रुके उन्होंने पूछा कि तुम लोग कौन हो और इस तरह से चिल्ला क्यों रहे हो। इसके बाद आवाज कि हे! भ्राता, हम आपके चारों भाई हैं, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और यह द्रोपदी है। हम नकर की यातना भोग रहे हैं। ये जानकर युद्धिष्ठर को बहुत दुख हुआ और उन्होंने देवदूत को वापस जाने के लिए कहा और अपने भाइयों के पास ही रहने का फैसला लिया।

देवदूतों ने ये बात देवराज इंद्र को बताई तो देवराज इंद्र देवताओं के साथ युधिष्ठिर को वापस लेने जाने लगे। इंद्र ने कहां की छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाने के कारण तुम्हारे भाइयों का यह हाल हुआ है। इसलिए तुम अब स्वर्ग को मेरे साथ चलो। मैं तुम्हारे पुणे के प्रभाव से तुम्हारी भाइयों को पहले ही स्वर्ग में भेज दूंगा। देवराज इंद्र के कहने पर युधिष्ठिर ने देव नदी गंगा में स्नान किया और स्नान करते हैं उन्होंने मानव शरीर का त्याग कर दिव्य रूप धारण किया और वह स्वर्ग में पहुंचे। उन्होंने देखा कि उनके चारों भाई वहां पर आनंद पूर्वक विराजमान थे। इस प्रकार सभी भाइयों को अपने-अपने रूप में देखकर युधिष्ठिर प्रसन्न हुए।

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