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जन्म कुंडली के 12 घर


Kundali किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली निकालने के लिए हमें उसके 12 भाव को जानना पहचानना पड़ता है। जिससे भविष्यवाणी की जाती है और पूरी जन्मकुंडली की व्याख्या इन 12 भाव से जुड़ी होती है। कुंडली के सभी भाव को आज हम आपको पूरे विस्तार से बताएंगे। 12 भाव की क्या-क्या विशेषता है और कौन-सा भाव जीवन की कौन-सी जानकारी से जुड़ा हुआ है.. आइए जानते हैं...

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जन्म कुंडली प्रथम भाव

जन्म कुंडली के पहले भाव का कारक सूर्य होता है। इस भाव में मनुष्य की शारीरिक रचना, गुण, ज्ञान, बाल्यावस्था, आयु, स्वास्थ्य, मान-सम्मान, पराक्रम, साहस, आदि का पता चलता है।

पहले भाव की विशेषता

जन्म कुंडली का पहला भाव सभी भावों का राजा कहलाता है। इस भाव में एक से अधिक ग्रह का रहना अच्छा नहीं माना जाता। यदि पहले भाव में एक ग्रह से ज्यादा ग्रह आ जाए तो ऐसी स्थिति में मनुष्य के जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जातक को दिमाग से संबंधित कोई समस्या हो जाती है। प्रथम भाव बच्चों की शिक्षा, लंबी दूरी की यात्रा, बच्चों का भाग्य, कर्ज़, शत्रु की हानि को भी दर्शाता है।

द्वितीय भाव

जन्म कुंडली के दूसरे भाव से पता चलता है कि आपके परिवार के सदस्यों का भविष्य कैसे रहने वाला जैसे भाई-बहन को हानि होना, उनके खर्चे या छोटे भाई बहन से आपको मिलने वाली मदद, मां को होने वाला है लाभ और वृद्धि साथ ही आपके जीवन में प्रयासों की कमी आदि के बारे में इसी भाव में विचार किया जाता है।

दूसरे भाव की विशेषता

दूसरा भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इससे हमारे जीवन जीने की शैली, भौतिक सुख, संपत्ति की खरीदारी और परिवार के बारे में पता चलता है। यह भाव तभी सक्रिय होता है जब नवम या दशम भाव में कोई ग्रह उपस्थित हो। यदि नवम या दशम भाव में कोई ग्रह उपस्थित नहीं रहता है तो दूसरे भाव की निष्क्रियता बरकरार रहती है। चाहे फिर शुभ ग्रह ही क्यों ना इस भाव में बैठा हो।

कुंडली में तृतीय भाव

कुंडली का तृतीय भाव वीरता और हिम्मत का भाव कहा जाता है। इसके माध्यम से संवाद शैली और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों का पता चलता है। यह भाव छोटे भाई बहनों से भी संबंधित है।

तृतीय भाव की विशेषता

इस भाव की विशेषता है कि यह भाव भाई-बहन, बुद्धिमत्ता, रिश्तेदार, पत्र लेखन आदि को दर्शाता है। माना जाता है कि मानसिक स्थिति, दृढ़ संकल्प और भाषा के बारे में जानने के लिए इसी भाव को ही देखा जा सकता है।

कुंडली का चतुर्थ भाव

कुंडली का चौथा भाव प्रसन्नता और सुख का भाव कहा गया है। इस भाव के माध्यम से ही जातक की छवि और अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध, सुख सुविधा, स्कूली शिक्षा, वाहन आदि के बारे में ज्ञात होता है।

चतुर्थ भाव की विशेषता

यह भाव माता का भाव होता है। इसी के माध्यम से घर परिवार से जुड़ी गुप्त बातों का बोध होता है। साथ ही यह भाव घर परिवार और मनुष्य के सामान्य जीवन के बारे में दर्शाता है। इस भाव में जीवनसाथी के करियर, विवाह के परिवार, बीवी बच्चों का भी ज्ञात होता है।

कुंडली का पंचम् भाव

यह भाव मुख्य रूप से संतान और ज्ञान का भाव होता है। इसी भाव से ज्ञान, पुण्य, कर्म, बुद्धि, बच्चे, पेट, वैदिक ज्ञान आदि का विचार किया जाता है।

पंचम भाव की विशेषता

पांचवा भाव संतान की उत्पत्ति, सामाजिक झुकाव का प्रतिनिधित्व, उत्पत्ति, मनोरंजन रूपांतर, रोमांस, प्यार, सिनेमा, मनोरंजन आदि को दर्शाता है। इसी भाव से पूर्व जन्म में किए गए पुण्य का भी ज्ञात किया जा सकता है।

कुंडली का षष्ठम् भाव

इस भाव को शत्रु और रोग का स्थान कहा जाता है। क्योंकि इसमें हमें नकारात्मक चीजों देखने को मिलती है। इससे जातक के रोग, दुश्मन, कलह, मुकदमों, नौकर, पाप कर्म आदि को दर्शाया जाता है।

षष्ठम् भाव की विशेषता

इस भाव के बारे में जानना जरूरी है। ताकि जीवन में आने वाली नकारात्मक चीजों का समय से पता चल सकें और आने वाली चुनौतियों के लिए जातक तैयार रहे। ये भाव शैतानी शक्ति, भय, समाज में अपमान, सूजन, भयानक रोग और गलतफहमी को दर्शाता है।

कुंडली का सप्तम् भाव

कुंडली में सप्तम भाव से जीवनसाथी, वैवाहिक जीवन की खुशियां, व्यापारिक रणनीति, कूटनीति, सट्टा, यात्राएँ आदि के बारे में जाना जाता है।

सप्तम् भाव की विशेषता

माना जाता है कि विशेष तौर पर ये भाव गृह परिववर्तन और विदेश यात्राओं के बारे में बोध कराता है। प्रथम भाव का स्वामी यदि सातवें भाव में स्थित हो तो जातक अपने मूल स्थान से दूर संपत्ति को बनाता है। इतना ही नहीं ये भाव गोद ली हुई संतान के बारे में भी दर्शाता है।

कुंडली का अष्टम् भाव

ये भाव सबसे महत्वपूर्ण विषय को दर्शाता है। दरअसल, इसी भाव में मनुष्य की आयु का भेद होता है। इसलिए इसे आयु का भाव भी कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दुख, मानसिक क्लेश और अचानक से होने वाले संकट के बारे में विचार किया जाता है।

अष्टम् भाव की विशेषता

शोध, गूढ़, खजाना, खदान, रहस्य, व्यापार, लॉटरी आदि इसी भाव में आती है। कुंडली के आठवें भाव में जातक की विरासत के बारे में पढ़ा सकता है। साथ घर में मुखिया की तत्काल मृत्यु के बाद जातक को प्राप्त होने वाली संपत्ति भी इसी भाव में दर्शायी जाती है।

कुंडली का नवम भाव

इस भाव को भाग्य का भाव कहते हैं। जो जातक के जीवन में विशेष स्थान रखता है। जातक के भाग्य में क्या लिखा है, क्या शुभ और अशुभ होने वाला इसी भाव में विचार किया जाता है।

नवम् भाव की विशेषता

नवम् भाव को भाग्य के साथ भी धर्म और विश्वास का भाव भी कहा जाता है। इससे दैवीय पूजा, भाग्य, कानून, नाटकीय, गुण, नेतृत्व, दान, आत्मा, भूत, सभागर, हाथी, घोड़े, दर्शन, विज्ञान आदि के बारे में विचार किया जा सकता है।

दशम् भाव

कुंडली के दशवें भाव में मनुष्य के कर्मों पर विचार किया जा सकता है। इससे बॉस, पद-प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, घुटनों का दर्द, सासू मां आदि के बारे में मामूल होता है।

कुंडली का दशम् भाव की विशेषता

इस भाव को पिता का भाव कहा जाता है। ये भाव चतुर्थ भाव का विपरीत है। इसी भाव से जातक के अधिकार, परिवार और खुशियां कमी देखी जा सकती है। साथ ही कई ज्योतिष का मानना है कि इस भाव से ही लोगों के पूर्वजों के प्रति कर्म. व्यापार, आजीविका, स्थिति, रीढ़ की हड्डी के बारे में भी विचार किया जाता है।

कुंडली का एकादश भाव

इस भाव से जीवन निर्वाह करने के लिए जरूरी चीज के बारे में ज्ञात होता है। दरअसल, इसे लाभ और आमदनी का भाव कहा जाता है। इससे ही लाभ, आय के तरीके, भेंट या उपहार, मित्र आदि के बारे में जाना जाता है।

एकादश भाव की विशेषता

ज्योतिष में एकादश भाव को बड़ा ही प्रभावशाली माना गया है। ये भाव जातकों की विश्वसनीयता के बारे में बताता है। इसी भाव से वित्तीय मामलों की संपत्ति का प्रतिनिधित्व किया जाता है।

कुंडली का द्वादश भाव

इस भाव से जातकों के व्यय या हानि के बारे में जाना जाता है। इससे कर्ज, नुकसान, प्रदेश, धन आगमन, घर खर्च, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल जाना और मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।

द्वादश भाव की विशेषता

माना जाता है कि ये भाव छिपा हुआ होता है। ये भाव से बॉस की कुशलता, धन कमाने के लिए की गई मेहनत, कार्य की प्रकृति, प्रयास और व्यापक मात्रा में मैत्रीपूर्ण संबंधों को बताता है।

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